केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में "मन की दिव्य शक्तियां" विषय पर गोष्ठी का आयोजन ज़ूम पर ऑनलाइन किया गया।
— Sunday, 21st February 202121 फरवरी रविवार को "मन की दिव्य शक्तियाँ" पर गोष्ठी व राष्ट्रीय कवि निराला को किया नमन। साथ ही राष्ट्रीय कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की 125 वीं जयन्ती पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।यह परिषद का कोरोना काल में 177 वां वेबिनार था।
वैदिक विद्वान आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा ने मन की दिव्य शक्तियों का मनमोहक चित्रण करते हुए कहा कि यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो मन पर नियंत्रण आवश्यक है।मन की उत्पत्ति सात्त्विक और राजसिक भाव से होती है।सत्त्वभाव से मन में उत्साह,प्रसन्नता,पावनता, कार्यदक्षता और एकाग्रता निरंतर बढ़ती है। राजसिक भाव से मन में चंचलता,गतिशीलता, क्रियाशीलता, भोगविलासिता,अंहकार -अभिमानिता और हठधर्मिता बढ़ती है।आचार्य श्री ने कहा कि सूक्ष्म शरीर के संघात में मन की महान भूमिका है। यह मन दैव,यक्ष,प्रज्ञान,चेतस्,धृति, प्रत्यग्भान,विश्वभान और वशीकरण है। सात्त्विक कर्मों के संपादन से यह मन शान्त, निर्मल और चन्द्रबिम्बवत् सौम्यपूर्ण होता है।राजसिककार्यों के करते समय मन रक्त वर्ण,धूम्रमिश्रित और लाल रंग की रश्मियों से भर जाता है।तामसिककृत्यों में मन संकुचित,मलिन और मुरझाया सा रहता है।आचार्य जी ने मन की महानता बताते हुए समझाया कि मन मोक्ष प्राप्ति पर्यन्त बुद्धि के साथ सहकारी बनकर रहता है।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने राष्ट्रीय कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला" की 125 वीं जयंती पर स्मरण करते हुए उन्हें आधुनिक हिन्दी साहित्य का निर्माता बताया । निराला का जन्म 21 फरवरी 1896 उन्नाव में हुआ था। उन्होंने विभिन्न पारिवारिक कठिनाइयों के बीच संघर्ष करके अपनी पहचान बनायी वह एक कवि,उपन्यास कार निबंध कार,कहानीकार थे। आज के साहित्यकारों के लिए वह प्रकाश पुंज बनकर प्रेरणा देते रहेंगे।
शिक्षाविद जगदीश पाहुजा ने कहा कि मन की शक्ति सर्वोच्च शक्ति है।इस पर नियंत्रण करके ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। जप,तप,मौन,उपवास आदि मन को स्थिर करने के साधन है।
यदि हमें हर समय निराशा घेरे रहती तो हमें मन की शक्ति को बढ़ाने की आवश्यकता है।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद उत्तर प्रदेश के महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि मन जब भी सीमाएं लांघता है तो वाणी अप्रिय हो उठती है और हम अपने प्रिय को भी अप्रिय शब्द कह देते हैं।
योगाचार्य सौरभ गुप्ता ने कहा कि मौन मन की वह आदर्श अवस्था है जिसमें डूबकर मनुष्य परम शांति का अनुभव करने लगता है।
गायिका कुसुम भण्डारी,ईश्वर देवी आर्या,रविन्द्र गुप्ता,संध्या पाण्डेय, प्रवीना ठकर,मृदुल अग्रवाल,विभा शर्मा,वीना वोहरा आदि ने अपने गीतों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
आचार्य महेन्द्र भाई,देवेन्द्र भगत, विजय हंस,दुर्गेश आर्य,सुरेश आर्य,धर्म पाल आर्य,आर पी सूरी,चंद्रप्रभा अरोड़ा आदि उपस्थित थे।