क्या देश की सर्वोच्च पंचायत संसद को ताला लगाने का समय आ गया है?

सचमुच देश की हालत देखकर, ऐसा लगता है कि, अब देश की सर्वोच्च पंचायत संसद भवन को ताला लगाने का समय आ गया है, ताला क्यों न लगाया जाये जिस संसद को चलाने 43 प्रतिशत अपराधी हों, चुनाव आयोग ने आँख पट्टी बाँध रखी हो, न्यायपालिका, भ्रष्ट न्याय व्यवस्था एव विधायिका के सामने विवश हो, जिस मीडिया की भृकुटि भागिमा मात्र से सत्ता की दीवारें सूखे पीपल के पत्तों की तरह कंपन करने लगती थी, मजबूत से मजबूत सत्ता की दीवारे भी रेत के महल की तरह ढह जाया करती थी आज, मीडिया सत्ता से सवाल करते हुये काँपने लग जाती है तब, निश्चय ही ऐसी सर्वोच्च पंचायत को ताला लगाने का सही समय आ गया है, सिर्फ  संसद को ही नहीं बल्कि, समूची सड़ी न्यायव्यवस्था को गंगा में बहाने का सही समय आ गया है। इतिहास साक्ष्य रहा है, पत्रकारिता कई क्रांतियों की वाहक रही है, पत्रकारों ने ही समय और परिस्थितियों के अनुसार इतिहास की परिभाषाये गढ़ी हैं किन्तु, ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि, अमरत्व के वरदान से अभिसिंचित, धर्म ध्वजा धारक मीडिया के माथे पर कभी न भरने वाला ठीक वैसा ही जख्म दिया जा चुका है जैसा कि, द्वापर में द्रोण पुत्र अश्वथामा के मत्थे पर कुन्ती पुत्र अर्जुन ने मस्तिष्क से मणि निकालते समय दिया था। पत्रकारिता के यश्यश्वी भाल पर जनता की आवाज उठाने वाली मीडिया,  सत्ता की शक्ति के समक्ष शाष्टांग दण्डवत होकर सत्ता की चापलूसी करती नजर आ रही है, डर है कहीं ऐसा न हो कि, जो जनता अपनो की लाशों के लिए तड़प रही है वह जानता आहत होकर चुनी हुई सरकार को दौड़ाना शुरू कर दे। कहने अच्छा तो नहीं लगता है किन्तु फिर भी, देश की जनता की  न्यायपालिका बची हुई आस्था की डोर न चटक जाये जिस दिन ऐसा हुआ फिर न तो कोई विधायिका और न ही सड़ी गली न्यायव्यवस्था इन नेताओं को तो नहीं बचा पायेगी। शर्म आती है देश रहबरों पर न्यायपालिका के आदेशों की धज्जियाँ उड़ाकर रख दी है, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश एव चुनाव आयोग के निर्देशों को भी चुनावी गंगा बहा कर रख दिया, दिनाँक 25 अप्रैल 21 की बंगाल में मिथुन चक्रवर्ती की भाजपा चुनावी रैली में लगभग 50, हजार की बिना मास्क वाली भीड़ जुटायी गयी क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि वे केंद्र शाषित दल के उम्मीदवार हैं इसलिए उन पर कोई कानून लागू नहीं होता क्या मिथुन चक्रवर्ती को जानबूझकर कोरोना फैलाने के अपराध में डिजास्टर मैनेजमेंट अधिनियम की सुसंगत धाराओं में जेल नहीं भेजा जाना चाहिए यदि नहीं तो, फिर आम जनता का कार के अंदर बिना मास्क का चालान कर लूटना बन्द करे सरकार। वैसे भी देश की राजनीति में नेता कम बचे है खच्चर ज्यादा है और जब तक देश को खच्चर चलायेंगें, देश भर में हर आँगन चिताए जलती रहेंगीं। समझ मे नही आता है आखिर किस गधे ने इन सरकारों को नाईट कर्फ्यू का आईडिया दिया है, कोरोना कोई वीवीआईपी कल्चर से आता है जो डिनर के इवनिंग वॉक पर निकलेगा तभी अपना शिकार ढूँढेगा, कोरोना न चुनावी रैलियों में जायेगा, न कुम्भ में जायेगा, न नेता की शादी समारोह इत्यादि में। कुछ तो शर्म करो सरकार, लोग मर रहे हैं, अरे किसी की नहीं तो कम से कम न्यायपालिका की ही लाज रख लो।


डॉ0वी0के0सिंह
(खोजी पत्रकार)

लेख़क के निजी विचार

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