पर्यावरण संरक्षण को गति देने के लिए राज्य स्तर पर अभियान शुरू।
— Wednesday, 31st March 2021Stand With Nature संस्था की केंद्रीय कमेटी के निर्णय के अनुसार देशभर में जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर जागरूकता अभियान व पर्यावरण संरक्षण के प्रति अभियानों को गति देने के उद्देश्य से संगठन निर्माण की दिशा में आज संस्था संयोजक लोकेश भिवानी की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश पश्चिम राज्य की कार्यकारिणी गठित की गई , यह कमेटी प्रदेश में संगठन निर्माण का कार्य करेगी व पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित अभियानों को राज्य स्तर पर चलाने को सुनिश्चित करेगी।
केंद्रीय कमेटी ने निम्नलिखित कार्यकर्ताओ को उत्तर प्रदेश पश्चिम कमेटी के पदाधिकारी व सदस्य घोषित किया ।
. मीनाक्षी मिश्रा - अध्यक्षा, कमलकांत शर्मा - उपाध्यक्ष,हर्षित श्रीवास्तव - सचिव,प्रशांत जयंत - कोषाध्यक्ष,राजेश बैसोया,. अज़म खान, आशीष शाक्य, छाया शर्मा, सुमित तंवर,हिमांशु अग्रवाल,
तूषार अग्रवाल,अश्विनी कुमार,एडवोकेट नरेश कुमार, राशिद सिद्दीकी. एडवोकेट अवधेश कुमार ,रवि भारद्वाज
सँस्था के संस्थापक सदस्य अक्षय आर्या में सँस्था के बारे में बताया कि
स्टैंड विद नेचर देशभर में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जागरूकता अभियान व पर्यावरण संरक्षण को समर्पित एनजीओ है , जो देश में साइकिल यात्राओं , सेमिनार , सभा , प्रतियोगिताएं , वेबिनार , व अनेक अभियानों के जरिए पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम कर रही है।
स्टैंड विद नेचर सँस्था आपका ध्यान धरती पर मंडराते एक बड़े खतरे जलवायु परिवर्तन(climate change) की ओर दिलाना चाहती है।
आने वाले समय में हमें जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों जैसे बढ़ता तापमान, मौसम की चरम स्थितियां, जल संकट, चढ़ता समुद्री जलस्तर, महासागरीय अम्लीकरण, पारिस्थितिकी तंत्र में रुकावटों का सामना करना पड़ेगा।
वैसे तो इन समस्याओं का मूल कारण मानव सभ्यता ही है, लेकिन गौर करने पर पाएंगे कि हमारी सरकारों का पर्यावरण के प्रति बहुत उदासीन रवैया रहा है, जिसके खतरनाक परिणाम हमें भुगतने होंगे, जिनकी शुरुआत हो चुकी है।
दशकों के अंतराल पर सभी राष्ट्रों के संगठनों के पर्यावरण पर समझौते रहें है, जिनमें तय होता है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को कैसा पर्यावरण देंगे। लेकिन आज पर्यावरण के हालातों को देखकर लगता है कि उन सरकारों या संस्थाओं ने इस विषय पर गम्भीरता से काम नही किया, जिसका परिणाम आज सब भुगत रहे हैं और आगे और भी खतरनाक स्थिति की ओर जा रहे हैं।
अगर देखा जाए तो हमारी इन सरकारों/संस्थाओं पर मानवाधिकार हनन का मामला बनता है। शुद्ध हवा, शुद्ध जल, पहाड़, जंगल, नदियां हर पीढ़ी का मूल अधिकार हैं और वर्तमान पीढ़ी की ज़िम्मेदारी बनती है कि इन सबको बनाए रखने में सहयोग करे।
अगर वर्तमान परिस्थितियों को देखा जाए तो हम अपने पूर्वजों की अपेक्षा कई गुना तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर इन्हें बर्बाद करने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक, पानी की बर्बादी, वातावरण में बढ़ती ग्रीन हाउस गैसें, फसलों में जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग, जंगलो को काटकर वहाँ बड़े-बड़े सीमेंट के जंगल बनाने में हम सब ही तो शामिल हैं।
मानव जाति की वर्तमान पीढ़ी सभ्यता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा साबित होने वाली है क्योंकि हम भारत में इस बारे में बात कर रहें है तो हमें इस विषय पर भी गम्भीरता से सोचना होगा कि आख़िर क्यों हम ही आज लालच में आकर उपजाऊ भूमि में ज़हर का छिड़काव कर भूमि को बंजर बनाना चाहते है? यहाँ सरकारी नीतियां किसानों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं इसलिए इसकी दोषी सरकारें भी हैं।
ये कोई राजनैतिक द्वेष का विषय नही है, जलवायु परिवर्तन पर हमें एक जनांदोलन की ज़रूरत है। इसके लिए हम सब को मिलकर सतत प्रयास करने होंगे ।
एक नए अध्ययन में पता चला है कि मोटे अनाज की तुलना में चावल जैसी खाद्यान्न फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। इसीलिए जलवायु परिवर्तन के चलते खाद्य आपूर्ति की समस्या से निपटने में मोटे अनाज अच्छा विकल्प हो सकते हैं। किसान इन उपायों को अपनाकर जलवायु परिवर्तन से बचने के अभियान में सहयोगी रह सकते हैं।
कई राज्यो में तो किसान ही इस आंदोलन के अगुवा नजर आते हैं। जैविक खेती करने वाले किसान प्रकृति और मानव जाति के सबसे बड़े हितैषी कहे जा सकते हैं।
भारत में खेती के सामने दो अहम चुनौतियां हैं एक तो खाने में कीटनाशक न हों और दूसरा तेज़ी बढ़ रही जनसंख्या के लिए पर्याप्त भोजन भी उपलब्ध हो।
जिस तरह से किसान जैविक खेती की ओर लौट रहे हैं अगर सरकारों का सहयोग मिला तो अगले 5-7 सालों में बाजार से रसायनिक खाने के सामान लगभग खत्म हो जाएंगे , ये अपने आप में बड़ी उपलब्धि होगी।
जलवायु परिवर्तन वैसे तो पूरी दुनिया के लिए ही खतरा है लेकिन इसके कारणों में से एक वातावरण में मौजूद जहरीली गैसें और तैरते खतरनाक रेडिएशन हैं जो सबसे ज्यादा नवजात बच्चो के शारिरिक व मानसिक विकास को प्रभावित करेंगे, अगर वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं रखा जाता है, तो यह पूरी पीढ़ी के भविष्य के स्वरूप पर असर डालेगा।
दिल्ली के बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के फेफड़े अब गुलाबी नहीं- काले हो गए हैं। लांसेट पत्रिका में स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक गर्म होती पृथ्वी का प्रभाव दुनिया के बच्चों पर पहले से ही पड़ रहा है। पिछले तीस सालों में सभी लोगों और निश्चित तौर पर बच्चों की मौतों की संख्या में गिरावट देखी गई। लेकिन यह चिंताजनक है कि अगर जलवायु परिवर्तन की समस्या से तत्काल नहीं निपटा गया, तो यह लाभ उलट जाएगा। हम केवल और ज्यादा आर्थिक लाभ और धन सम्बन्धी बहसें ही करते रह जाएंगे ।
जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्रों का जल स्तर पहले व्यक्त किए गए अनुमानों से कहीं ज़्यादा रफ़्तार से बढ़ रहा है। “नई रिपोर्ट कहती है कि सही समय पर अगर हम जलवायु परिवर्तन को रोकने में कामयाब नहीं होते हैं तो शोध के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2050 में दुनिया भर में लगभग 30 करोड़ लोगों को समुद्री जल स्तर बढ़ने के कारण भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ेगा.”
मानव जाति विलुप्ति की ओर बढ़ रही है , समय रहते हम सब को मिलकर इसपर कठोर कदम उठाने होंगे , हमें हर उस चीज पर सोचना होगा जो पर्यावरण को प्रभावित कर रही है ।
दरअसल ये भविष्य की लड़ाई है। मेरे, आपके, बच्चो के सबके भविष्य की लड़ाई, जिसे हम सब को मिलकर लड़ना होगा।