यदि अंग्रेज न होते तो महान सम्राट अशोक की महानता और पराक्रम का पता न चलता। - बौद्धाचार्य शांति स्वरूप बौद्ध

कितने आश्चर्य की बात है कि इस देश में ऐसे लोग भी थे, जिन्हें पराक्रमी चक्रवर्ती सम्राट अशोक के कल्याणकारी कार्य उनकी आंखों में कांटे की तरह चुभने लगे। 
उन्होंने लामबंद होकर सम्राट अशोक के सद्प्रयासों के कारण मजबूत हुए बौद्ध धम्म और उनके प्रतिनिधि तमाम प्रतीकों को ठिकाने लगाने का प्रपंच रचना आरंभ कर दिया। एक दिन ऐसा भी आया कि धम्मप्रिय, शीलवान, निश्चल बौद्धों पर अचानक धावा बोल दिया गया। बृहद्रथ मौर्य जैसे कल्याणकारी सम्राट का कत्ल कर दिया गया। बौद्ध धम्म की पहचान अर्थात बौद्ध भिक्खुओं को मौत के घाट उतारने के लिए बड़े-बड़े पुरस्कार घोषित किए गए। ब्राह्मणी राजाओं के अत्याचारों के कारण बौद्ध धम्म कमजोर होने लगा। 
ब्राह्मणों द्वारा सभी बुद्ध विहारों पर कब्जा करके उन्हें हिंदू मठ अथवा मंदिरों में बदल दिया गया। शिलालेख और धम्म स्तंभ ध्वस्त कर दिए गए। 
भगवान बुद्ध के कल्याणकारी उपदेश जो "धम्मलिपि" में सम्राट अशोक द्वारा शिलाओं और स्तंभों पर लिखवाए गए थे, उस भाषा का प्रचलन ही बंद कर दिया गया यानि कि बलपूर्वक जनसामान्य से भूलवा दिया गया। यह सारा षड्यंत्र तलवार के बल पर ब्राह्मणी राजाओं द्वारा किया कराया गया।
 कुछ ही शताब्दियों में भारत के लोग भगवान बुद्ध और उनकी शिक्षाओं को भूल गए।  सम्राट अशोक का यहां नाम यहां के निवासियों के लिए अनजान-सा हो गया उनकी प्यारी भाषा पाली प्राकृत भाषा और धम्मलिपि ( ब्राह्मीलिपि ) भी  उनके लिए अजनबी हो गई। पराक्रमी और शूरवीर शाक्य पुत्रों को जबरदस्ती छोटी-छोटी शूद्र और अछूत जातियों में बांट कर गुलामों का सा जीवन व्यतीत करने को बाध्य कर दिया गया। सारे देश में धर्म के नाम पर पाखंड, आतंक और अंधविश्वास का वातावरण तैयार किया गया। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि शक्तिशाली और एकजुट भारत ब्राह्मणी करतूतों के कारण गुलाम हो गया। मुसलमान और अंग्रेज जैसे आक्रमणकारीयों ने भारत पर अपना झंडा फहराकर ब्राह्मणी पाप का भंडाफोड़ कर दिया।
इन आक्रमणकारियों ने भारत को राजनीतिक रुप से जहां हानि पहुंचाई ,वहीं दूसरी और अनजाने में उनके हाथों महान बौद्ध सांस्कृतिक विरासत जो मिट्टी में मिल चुकी थी, अंग्रेजों के पुरातत्व प्रेम के कारण जगजाहिर हो गई। बोधगया के महाबोधि महाविहार हो या सारनाथ के खंडहर व धम्म स्तंभ आदि स्मारक , कुशीनगर के मूल्यवान विहार हों या श्रावस्ती के वैभवशाली प्रासाद ( महल ) सांची के भव्य स्तूप हो या कलातीर्थ अजंता की गुफाएं; एक-एक करके सारी बौद्ध विरासत अंग्रेज अधिकारियों के कारण प्रकाश पर आने लगी। अंग्रेजों ने ही धम्म लिपि ( ब्राह्मीलिपि) को पढ़ने में सफलता पाई तो संसार में सम्राट अशोक और उनकी महानता और पराक्रम का पता चला। 
यह सत्य है कि यदि इस देश में अंग्रेज नहीं आए होते तो हमारी गौरवशाली विरासत जमीन में ही दबी पड़ी रहती राजनीतिक कारणों से भले ही हम अंग्रेजी शासकों की जी भर कर आलोचना करें पर अंग्रेजों के योगदान के लिए प्रत्येक भारतवासियों को उनका ऋणी होना चाहिए।

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